योगी आदित्यनाथ के अयोध्या दौरे पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मुहर थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस दौरे की अग्रिम सूचना दी गई थी. वैसे तो योगी उत्तर प्रदेश के हर जिले में सरकारी यात्रा पर निकल रहे हैं, लेकिन अयोध्या का दौरा सरकारी भी था, धार्मिक भी और सियासी भी. यह एक मुख्यमंत्री का, एक योगी का और एक भाजपा नेता, तीनों का दौरा था.
अमित शाह ने अभी से 2019 चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. योगी आदित्यनाथ के शपथ लेने के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ उनकी लंबी बैठक हुई थी. सुनी-सुनाई है कि इसी बैठक में अमित शाह ने उन्हें अपना लक्ष्य बता दिया था, योगी की अगली परीक्षा 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं 2019 का लोकसभा चुनाव है. 2014 के चुनाव में भाजपा 80 में से 73 सीटें जीती थी. अब अमित शाह ने योगी के सामने 2014 के नतीजों को 2019 में दोहराने का लक्ष्य रखा है.
इसलिए अयोध्या योगी आदित्यनाथ और अमित शाह दोनों के एजेंडे पर टॉप पर है. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अब करीब-करीब मानकर ही चल रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव में मोदी विरोधी सभी पार्टियां एक हो जाएंगी. उत्तर प्रदेश में भी मायावती और अखिलेश यादव साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे इसकी संभावना प्रबल है. इसी को ध्यान में रखते हुए अमित शाह उत्तर प्रदेश जीतने की योजना बना रहे हैं. एक भगवाधारी योगी का नेतृत्व और अयोध्या का मुद्दा. ये दोनों फैक्टर हिंदू वोट बैंक को जातियों में बंटने से रोक सकता है.
बताया जाता है कि योगी आदित्यनाथ बहुत पहले ही अयोध्या का दौरा करना चाहते थे. लेकिन अमित शाह ने रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास के जन्मोत्सव को इसके लिए सबसे सही अवसर माना. पिछले 15 साल में ये पहला मौका था जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने रामलला के दर्शन किए, रामजन्मभूमि जाकर पूजा अर्चना की. योगी चाहते तो इस मौके पर राम मंदिर का जिक्र तक नहीं करते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भाजपा का नेतृत्व और योगी दोनों चाहते हैं कि अगले दो साल तक राम मंदिर के मुद्दे पर लगातार चर्चा चलती रहे. इसलिए उन्होंने मध्यस्थता की पेशकश कर दी और कहा, ‘अगर दोनों पक्ष आपसी बातचीत से समाधान निकालें तो राज्य सरकार मध्यस्थता के लिए तैयार है. सुप्रीम कोर्ट ने भी आपसी बातचीत से मामले को सुलझाने की सलाह दी है. हमें नया प्रयास करना चाहिए.’
सुनी-सुनाई ही है कि अयोध्या को लेकर योगी आदित्यनाथ का एक रोडमैप है. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने वहां सालों से बंद रामलीला को फिर से शुरू किया. अब वे परिक्रमा के रास्ते को सुंदर बनाने वाले हैं. गंगा आरती की तरह सरयू नदी की भी आरती की योजना है. मोदी सरकार राम सर्किट बनाएगी. रामायण म्यूजियम बनाया जाएगा. योगी सरकार अगले कुछ महीनों में अयोध्या पर 350 करोड़ रुपए खर्च करेगी.
लेकिन बात सिर्फ अयोध्या के विकास और सौंदर्यीकरण पर खत्म नहीं होती है. भाजपा के अयोध्या प्लान का एक सियासी अध्याय औऱ भी है. अगले चार महीने में योगी आदित्यनाथ को विधानपरिषद या विधानसभा में से किसी एक का सदस्य बनना है. यह तय है कि वे पिछले मुख्यमंत्रियों - अखिलेश यादव और मायावती - की तरह विधान परिषद के सदस्य नहीं बनेंगे. सुनी-सुनाई है कि योगी ने पार्टी नेतृत्व के सामने इच्छा जताई है कि वे अयोध्या की सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश में संघ के प्रांतीय प्रचारक और क्षेत्र प्रचारकों को भी योगी का यह आइडिया बेहद पसंद आया था. संघ के लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री काशी के सांसद और मुख्यमंत्री अयोध्या के विधायक होंगे तो हिंदू समाज में इसका संदेश साफ जाएगा.
योगी के इस प्रस्ताव पर अमित शाह विचार कर रहे हैं. पार्टी का एक धड़ा चाहता है कि उत्तर प्रदेश में जबरदस्त बहुमत के बाद किसी भी तरह का जोखिम उठाने की जरूरत नहीं है. योगी को अपने गढ़ गोरखपुर से चुनाव लड़ना चाहिए जहां से उनकी जीत की सौ फीसदी गारंटी है. क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि योगी के उपचुनाव में संपूर्ण विपक्ष मिलकर सिर्फ एक उम्मीदवार उतारेगा. इस आमने-सामने की लड़ाई में योगी को रिकॉर्ड वोटों से जीतना होगा. सुनी-सुनाई है कि योगी का यह अयोध्या दौरा इस मामले में शहर की हवा का अंदाज़ा लेने के लिए भी था. अयोध्या के विधायक योगी को अपनी सीट ऑफर कर चुके हैं, अब उन्हें तय करना है कि उन्हें अयोध्या की हवा पसंद है या फिर वे गोरखपुर की परिचित जमीन से ही चुनावी मैदान में उतरेंगे.
यानी कि भाजपा के अयोध्या कांड में अभी कई अध्याय और जुड़ने हैं: एक तरफ लखनऊ में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ मुकदमे की रोजाना सुनवाई शुरू हो गई है जो अगले दो साल तक चलेगी. दूसरी तरफ मोदी सरकार अयोध्या में पर्यटन को बढावा देने के लिए राम के नाम पर काम कर रही है. तीसरी तरफ राम के धाम से योगी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. संयोग कुछ ऐसा बन रहा है जिससे राम मंदिर का मुद्दा चर्चा में बार-बार आ रहा है. पहले जो भाजपा नेता मंदिर की बात तक करने से बचते थे, अब वही कहने लगे हैं 2018 से राम मंदिर निर्माण शुरू हो सकता है.
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